“मधेश राजनीतिक उच्चस्तरीय संयन्त्र” गठन गर्न डा. सी के राउतको प्रस्ताव (प्रस्तावसहित)

काठमाडौं, २५ पुस । तराई–मधेशलाई छुट्टै राष्ट्र बनाउने अभियानमा लागेका स्वतन्त्र मधेश गठबन्धनका संयोजक डा. सीके राउतले ‘मधेश राजनीतिक उच्चस्तरीय संयन्त्र’ गठनका लागि प्रस्ताव सार्वजनिक गरेका छन् । उनले मधेशी, आदिवासी जनजाति, थारु, मुस्लिम लगायतका नाममा खोलिएको राजनीतिक दलका अध्यक्षहरुलाई सो संयन्त्र गठनका लागि अपील गरेका छन् ।
डा. राउतले संघीयले मधेश÷तराईको औपनिवेशिक समस्याको समाधान गर्न नसक्ने दाबी गर्दै एक मधेश एक प्रदेश लागू हुँदा पनि मधेशीहरुको आधारभूत समस्याको समाधान गर्न नसक्ने प्रस्तावमा उल्लेख गरेका छन् । उनले मधेश समस्या समाधानका लागि स्वतन्त्र मधेश स्थापित गर्नु नै पर्ने दाबी गरेका छन् । उनले साढे चार महिनादेखि अधिकारका लागि तराई–मधेशमा भइरहेको आन्दोलनलाई शासक वर्गले नजरअन्दाज गर्दै आएको प्रस्तावमा उल्लेख गरेका छन् । स्वतन्त्रताबाहेक अन्य कुनै विकल्प नरहेको ठोकुवासमेत गरेका छन् ।
डा. राउतले तमलोपा अध्यक्ष महन्थ ठाकुर, फोरम नेपाल अध्यक्ष उपेन्द्र यादव, फोरम लोकतान्त्रिक अध्यक्ष विजयकुमार गच्छदार, रामसपा अध्यक्ष शरत्सिंह भण्डारी, तमसपा अध्यक्ष महेन्द्र यादव, नेसपा अध्यक्ष अनिलकुमार झा, फोरम गणतान्त्रिक अध्यक्ष राजकिशोर यादव, सद्भावना अध्यक्ष राजेन्द्र महतो, तमरा अभियानका संयोजक जयप्रकाश गुप्ता, मातृका यादव, राष्ट्रिय मुस्लिम संघर्ष गठबन्धनका समीम अन्सारी, कोचिला गाभूर फ्रन्टका भरत राजवंशी, थरुहट/थारुवान संघर्ष समितिका धनिराम चौधरी, मधेश नागरिक समाजका डा. डम्बर नारायण यादव र मधेशी नागरिक समाजका गणेश मण्डललाई सो प्रस्ताव बुझाएका छन् ।
राउतको प्रस्ताव
विषय: “मधेश राजनैतिक उच्चस्तरीय संयन्त्र” गठन करने के विषय में ।
महोदय,
पिछले साढ़े चार महिनों से अनवरत रुप में संघर्ष करते हुए आप जो मधेश/तराई की जनता को अधिकार दिलाने के लिए आंदोलन को नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं, उसकी जितनी भी सराहना की जाय, कम है। इस कार्य के लिए हम सभी आपको बहुत बहुत धन्यवाद देते हैं।
मधेश/तराई की जनता आज बहुत ही संवदेनशील मोड पर खड़ी है। ‘एक मधेश एक स्वायत्त प्रदेश’ बनाके अपना अधिकार पाने के सपने लेकर जो मधेशी जनता वर्षों-वर्ष से आंदोलन करती आ रही है, उनके वे सारे सपने चकनाचूर हो गए हैं। वैसे भी संघीयता मधेश/तराई की औपनिवेशिक समस्या का समाधान नहीं कर सकती है। संघीयता लागू होने से ही (१) मधेश में मौजूद फिरंगी नेपाली सेना वापस नहीं हो सकती और उस जगह पर मधेशी सेना का निर्माण नहीं हो सकता। (२) मधेश में पहाडियों का बसने और कब्जा करने का क्रम (आप्रवासन) नहीं रुक सकता है, जिसके चलते आनेवाले दशकों में मधेश पूर्णत: नेपाली शासकवर्ग के अधीन चला जाएगा। (३) मधेश के लिए अति महत्त्वपूर्ण नागरिकता, विदेश और सुरक्षा नीति मधेशियों के हाथों में नहीं आ सकती है। (४) मधेश की नौकरियां मधेशवासियों को ही मिलने की गैरन्टी नहीं हो सकती है, जिसका मतलब है मधेश प्रदेश बन जाने पर भी उसमें मुख्यमंत्री से लेकर सिडिओ, एसपी लगायत सारे कर्मचारी नेपाली शासकवर्ग ही हो सकते हैं। (५) मधेश के जल, जमीन, जंगल, खानी, राजस्व, वैदेशिक अनुदान लगायत के साधन-स्रोत पर मधेशियों का ही पूर्ण अधिकार और नियंत्रण स्थापित नहीं हो सकता है। (६) मधेशियों को कोई अधिकार स्थायी रुप में नहीं मिल सकता है। जब चाहे नेपाली सेना लगाकर, संविधान को संशोधन या खारिज करके, या इमरजेन्सी लगाकर मधेशियों का सारा अधिकार पल भर में निलम्बन किया जा सकता है। यहां तक कि मधेशियों को मिली हुई सारी नागरिकता भी नेपाल शासकवर्ग जब चाहे खारिज कर सकते है, जैसे कि सन् १९९७ में दशों हजार नागरिकता खारिज की गई थी। (७) मधेशियों को अपना स्वतंत्र राष्ट्र, आजादी और आत्मसम्मान नहीं मिल सकता; उनकी राष्ट्रियता पर सदैव शंका की ही जाएगी। अत: एक मधेश एक प्रदेश के रुप में संघीयता लागू होने पर भी मधेशियों की आधारभूत समस्या का हल नहीं मिल सकेगा, वह समाधान स्वतंत्र मधेश स्थापित करने पर ही हो सकता है।
आप सभी भलीभाँती जानते हैं कि साढ़े चार महिने तक इतने वृहत् ढंग से मधेश आंदोलन चलना कोई साधारण बात नहीं है, पर इतना होने के बाबजूद भी मधेशी जनता को थोडा सा भी कोई अधिकार देने के लिए नेपाली शासकवर्ग अग्रसर नहीं दिखते। नेपाली राज में मधेश/तराई की जनता को अधिकार प्राप्त करने के सारे दरवाजे बंद हो चुके हैं और अधिकार देने के बदले नेपाली शासकवर्ग खुलेआम नरसंहार करने और मधेश/तराई को गृहयुद्ध में धकेलने के लिए उद्दत हैं। अब आजादी के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह गया है, और जितनी जल्दी हो, शांतिपूर्ण मार्ग से मधेश को आजाद करने में सभी की भलाई है। वरना इस तरह से निर्णयविहीन आंदोलन निरंतर चलते रहने से मधेश का जातीय द्वन्द्व, हिंसा और गृहयुद्ध में फँसना सुनिश्चित है और मधेश का हाल सिरिया या रुवाण्डा की तरह होने से कोई भी रोक नहीं सकता। इसलिए हम सभीको मिलकर आजादी के विकल्प के विषय में अविलम्ब विचार करना आवश्यक हो गया है।
सन् १९३३ के मोन्टेविडियो कन्वेन्सन द्वारा स्थापित अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार कोई भी देश बनने या उसको मान्यता मिलने के लिए चार शर्तेंहोती है: (१) स्थायी जनसंख्या, (२) निर्धारित भूगोल, (३) उसकी अपनी सरकार, और (४) दूसरे देशों से सम्बन्ध स्थापित करने की क्षमता। इन चारों चीजों को पूरा करने पर अंतरराष्ट्रीय कानून अनुसार उसे अलग या स्वतन्त्र देश की मान्यता दी जा सकती है।मधेश के पास स्थायी जनसंख्या और निर्धारित भूगोल मौजूद है यानि दो शर्तें पूरी है। अब मधेश को स्वतन्त्र देश के रुप में मान्यता दिलाने हेतु दो चीजें आवश्यक है: उसकी अपनी सरकार और दूसरे देशों से सम्बन्ध बनाना। मधेश सरकार गठन करने के भी अनेकों मार्ग है: 
(१) पहला मार्ग है, जनमत संग्रह कराने के बाद मधेश सरकार का गठन करना। इसमें कठिनाई यह है कि जनमत संग्रह कराने के लिए नेपाल सरकार समक्ष मांग रखनी पडेगी, और इसका नियंत्रण नेपाल सरकार के हाथों में रहेगा यानि कि नेपाल सरकार चाहेगी, तभी ही यह हो पाएगा।
(२) दूसरा तरीका है, नेपाल की वर्तमान संसद् में मधेश से जितने भी सांसद् है, वे राजीनामा देकर अलग मधेश संसद् बनाकर मधेश सरकार की घोषणा करते। इस मार्ग में कठिनाई यह है कि मधेश से जिते हुए सभी सांसद् अभी की स्थिति में इसके लिए तैयार होना मुश्किल है।
(३) तीसरा तरीका है, दशों लाख की संख्या में मधेशी जनता सभा में जमा होकर वहीं से मधेश सरकार की
(४) चौथा तरीका है, मधेश में अपना ही निर्वाचन कराके मधेश संविधान-सभा/संसद् और सरकार का गठन करना। इसका फायदा यह है कि (क) ५०% से ज्यादा मतदान होने पर यह प्रक्रिया स्वत: जनमत संग्रह का काम करेगी। (ख) इसके मार्फत् मधेश को निर्वाचित संसद् और सरकार मिलेगी। (ग) मधेशी जनता द्वारा निर्वाचित मधेश संसद् और सरकार होने के कारण उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलना सहज होगा। (घ) मधेश की सभी पार्टी, संघ-संगठनों को समेटा जा सकेगा, क्योंकि जब निर्वाचन होने लगेगा, तो उसमें मधेश की सभी पार्टियों के लोग उम्मीदवारी देंगे, हिस्सा लेंगे। (ङ) स्वतंत्र मधेश के पक्ष में विद्यमान जनमत से ज्यादा मत प्राप्त होगा, क्योंकि चुनाव जब होने लगेगा, तो उत्साह से पहले तटस्थ या असहमत रहे लोग भी मत गिराने जाएंगे। (च) और सबसे बडी बात, इस प्रक्रिया का पूरा नियन्त्रण मधेशी जनता के हाथों में रहेगा, यानि कि नेपाल सरकार द्वारा मांग पूरी करना आवश्यक नहीं होगा। अभी चल रहे मधेश आंदोलन सफल नहीं होने का सबसे बडा कारण है उसका नियन्त्रण अपने हाथों में नहीं होना, यानि कि हम नेपाल सरकार से मांग पूरी करने के लिए बोल रहे हैं, और वह पूरी करना या न करना अर्थात् उसका नियन्त्रण नेपाल सरकार के हाथों में है। परन्तु आजादी आंदोलन के इस स्वरुप में वह त्रुटि नहीं है, इसमें पूर्ण रुप से नियन्त्रण हमारे अपने हाथों में रहेगा, नेपाल सरकार को जाकर हमें कोई चीज पूरी करने के लिए कहना नहीं पडेगा। इसमें गांव-गांव में स्वयं निर्वाचन कराना और मधेश सरकार की घोषणा करना ही आंदोलन है; इसमें राजमार्ग बंद करके, नाकेबंदी करके, घेराऊ आदि करके नेपाल सरकार को मांग पूरी करने के लिए कहना नहीं पडेगा।
इसलिए, मधेश को स्वतंत्र देश के रुप में स्थापित करने के लिए मधेशी जनता को  ऊपर के चौथे तरीके को ही अपनाकर आगे बढना उचित होगा: अर्थात् मधेश में स्वयं निर्वाचन कराके मधेश संसद् और सरकार गठन करना, उसके बाद मधेश को स्वतंत्र देश घोषित करके अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए आह्वान करना।
आजादी के लिए इस मार्ग में चुनौतियाँ कुछ इस प्रकार है:
(क) सुरक्षा समस्या, अर्थात् क्या नेपाल सरकार स्वतंत्र मधेश का निर्वाचन करने देगी ?
– किसी गांव में निर्वाचन कराना हाइवे बंद करने, नाकेबंदी करने, सदरमुकाम बंद करने या सिडिओ कार्यालय घेरने से ज्यादा कठीन नहीं है। जैसे कि अभी के आंदोलन के माहौल में लगभग पूरा मधेश आन्दोलनकारियों के नियन्त्रण में है: न तो कोई गाडी चलती है न तो सरकारी कार्यालय। तो ऐसे अवस्था में गांव-गांव में निर्वाचन कराने से नेपाल सरकार रोक नहीं सकती है। और निर्वाचन कराना शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक गतिविधि है, अवरोधात्मक और आक्रामक गतिविधि नहीं। इसलिए इसे सेना परिचालित करके दबाया भी नहीं जा सकता। दूसरी बात, कुछ जगहों पर नेपाल सरकार निर्वाचन में बाधा डाल भी दें, तो कोई फर्क नहीं पडता, क्योंकि निर्वाचन एक ही दिन में, एक ही बार में सफल कराना आवश्यक नहीं होता है, निर्वाचन अनेकों चरणों में होता है। वाधा डाले हुए स्थानों पर दूसरे-तीसरे चरणों में निर्वाचन किया जा सकता है। यह निर्वाचन ३-६ महिने तक अनेक चरणों में चलेगा, और सम्पन्न होने में कोई कठिनाई नहीं होगी। जिस क्षेत्र में ‘स्वतंत्र मधेश’ विरोधी शक्तियां हाबी होने का खतरा रहेगा, उस क्षेत्र की जनता द्वारा सुरक्षित क्षेत्रों के बूथ पर मतदान करने की व्यवस्था की जाएगी।
(ख) आर्थिक समस्या, अर्थात् निर्वाचन कराने के लिए इतना बडा खर्च कहाँ से लाएँगे ?
– सरकारी निर्वाचन कराने में कितने अर्ब रुपया खर्च होता है, हम इस पर न जाएँ। पिछले चार महिनों से मधेश आन्दोलित है, उस आंदोलन के दौरान एक गांव से आन्दोलन में ट्रैक्टर, लाउडस्पीकर, टेंट, खाना आदि पर जितना खर्च हुआ है, उससे बहुत कम खर्च में उसी गांव में निर्वाचन आसानी से कराया जा सकता है। कहें तो ४-५ दिन आंदोलन के लिए जितना खर्च होता है, उतने में ही निर्वाचन कराया जा सकता है। तो आर्थिक दृष्टिकोण से भी यह बिलकुल सम्भव है।
(ग) जनशक्ति समस्या, अर्थात् निर्वाचन कराने के लिए अधिकृत, कर्मचारी और सुरक्षाकर्मी कहाँ से लाएँगे ?
– जब नेपाल सरकार निर्वाचन कराती है तो उसके लिए भी शिक्षक, स्वास्थ्यकर्मी और अन्य कर्मचारियों को ही निर्वाचन कराने के काम मे लगाया जाता है। तो उसी तरह मधेश में भी निर्वाचन कराने के लिए मधेशी कर्मचारी, शिक्षक, युवा आदि को ही काम में लाया जाएगा। सुरक्षा के लिए स्वयंसेवक दस्ता तैयार किया जाएगा, जो कि स्वतंत्र मधेश गठबन्धन के पहल में मधेश के जिलों में हो भी रहा है।
(घ) क्या इसे मान्यता मिलेगी ?
– अगर हम गम्भीर होकर सर्वपक्षीय सहमति से,  अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त विधि सम्मत तरीकों से, और अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों को रखकर पारदर्शी प्रक्रिया के तहत चुनाव कराते हैं, तो इसे मान्यता जरूर मिलेगी। उसके लिए हाइ-प्रोफाइल लोग (जैसे भूतपूर्व निर्वाचन आयुक्त, पूर्व न्यायाधीश आदि) के नेतृत्व में स्वतंत्र निर्वाचन आयोग गठन करके निर्वाचन सम्पन्न कराना होगा। और अभी के सन्दर्भ में जिस तरह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय नेपाल सरकार की रबैया के कारण छटपटा रहे हैं, उस अवस्था में उनके आगे निर्वाचित मधेश सरकार मिल जाय, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय झट से उस मधेश सरकार को समर्थन देने की सम्भावना प्रबल रहेगी।
स्मरण रहे, इसके लिए नमूना निर्वाचन का अभ्यास मधेश के विभिन्न जगहों पर गठबंधन की पहल में जारी है, और बहुत जगहों पर नमूना निर्वाचन सम्पन्न भी हो चुका है (देखें, नागरिक दैनिक, २०७२ पुस १६, पृष्ठ २)।
और मधेशी पार्टियां और संघ-संगठन अगर सभी एक जूट होकर लगें, तो इस प्रक्रिया द्वारा मधेश ६ महिने के भीतर आजाद हो सकता है। इसलिए आजादी आंदोलन को इस दिशा में एक होकर आगे बढाने के लिए नीचे का रोडम्याप आवश्यक चर्चा-परिचर्चा के लिए स्वतन्त्र मधेश गठबंधन प्रस्ताव करना चाहता है।
आजादी आंदोलन का प्रस्तावित रोडम्याप:
१. पहला चरण: मधेश की जनता में जाकर कोणसभा, जनसभा, आमसभा आदि करके उन्हें आजादी के लिए जागृत करना, आजादी लाने के मार्ग को समझाना, आजादी आंदोलन के स्वरुप बतलाना, और आजादी के लिए एकबद्ध जनमत तैयार करना। साथ-साथ, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का मत और समर्थन भी ‘स्वतंत्र मधेश’ के पक्ष में तैयार करना।
२. दूसरा चरण: मधेश में उच्चस्तरीय संयन्त्र निर्माण करना।
(क)   उच्चस्तरीय राजनैतिक संयन्त्र: विभिन्न राजनैतिक दल के अध्यक्ष, वरिष्ठ राजनितिज्ञ, बुद्धिजीवि, उद्योगपति, नागरिक समाज आदि को मिलाकर यह संयन्त्र बनाया जाएगा, जिसका काम मधेश के आगामी राजनैतिक डिस्कोर्स निर्धारण करना और राजनैतिक निर्णय लेना होगा।
(ख)   मधेश संवैधानिक सुझाव आयोग: भूतपूर्व न्यायाधीश, कानूनविद्, संविधानविद्, वकील आदि की सहभागिता में इसका गठन किया जाएगा, जिसका काम मधेश की राजनैतिक प्रक्रिया को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त विधी सम्मत ढंग से आगे बढाना होगा।
(ग)    स्वतंत्र मधेश निर्वाचन आयोग: भूतपूर्व निर्वाचन आयुक्त, न्यायाधीश आदि के नेतृत्व में गठन किया जाएगा, जिसका काम मधेश में निर्वाचण क्षेत्र निर्धारण करने और मतदाता नामावली तैयार करने से लेकर निर्वाचन सम्पन्न करने का होगा।
इसके साथ-साथ गठबन्धन और अन्य पार्टियों की पहल में आवश्यक जनशक्ति और पूर्वाधार निर्माण का काम भी सम्पन्न होगा।
३. तीसरा चरण:
(क)  मधेश संविधान-सभा/संसद् निर्वाचन की घोषणा करना और उसे ३-६ महिने के भीतर में चरणवद्ध रुप में सम्पन्न करना;
(ख)  मधेश संसद् और सरकार गठन करना;
(ग)   अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए आह्वान करना।
आजादी आंदोलन के इस प्रस्तावित रोडम्याप के ऊपर विचार-विमर्श करने तथा रोडम्याप के २(क) के तहत ‘मधेश उच्चस्तरीय राजनैतिक संयन्त्र’ निर्माण करने हेतु पहल करने के लिए सम्पूर्ण मधेशी जनता की ओर से हम विनम्र आग्रह करते हैं। हमें पूर्ण विश्वास है, आप मधेशी जनता को नेपाली औपनिवेशिक शासन और गुलामी से सदा के लिए मुक्त करने, मधेश को जातीय द्वन्द्व और गृहयुद्ध से बचाने, और मधेश की हालत सिरिया या रुवान्डा के जैसे बनने से रोकने ‘मधेश आजादी आंदोलन’ को नेतृत्व प्रदान करने के लिए तत्पर होंगे।
आपका,
डा. सी. के. राउत
संयोजक, स्वतन्त्र मधेश गठबन्धन
साभार समाचार

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